Jhurangu, Pauri Garhwal, Uttarakhand- Mr. Amit Bhadula
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My Village Jhurangu (झुड़ंगू)
Jhurangu is a small village located near Haldukhal in the Pauri Garhwal district of Uttarakhand. Like Haldukhal, Jhurangu is known for its scenic beauty and traditional lifestyle, with the surrounding landscape characterized by hills, forests, and agricultural fields. It is one of the hilly
villages where the larger columns of hill is located. The people are from different
castes and communities.
It is not a part of the Corbett Tiger Reserve but a buffer zone right opposite to Corbett National Park. it is 16 kilometers from maidavan. For wildlife lovers, the zone has a sufficient population of cheetal, sambar, Himalayan goat, bear, and tigers.On the other hand, the buffer zone is known for its beautiful natural scenery, including grasslands, and dense forests. This zone is home to several wildlife species, including tigers, leopards, deer, and many bird species
उत्तराखंड जो कि एक पहाड़ी राज्य है, न केवल हिल स्टेशनों के लिए जाना जाता है, बल्कि अपने अनोखे, लुभावने और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध गांवों की वजह से भी प्रसिद्ध है। आप में से कई लोग ऐसे होंगे जिन्हें लोकप्रिय जगहों पर घूमने के बजाए, ऑफबीट जगहों पर घूमना सबसे ज्यादा पसंद होता है। कुछ तो ऐसे भी होंगे, जिन्हें गांवों की संस्कृति बेहद अच्छी लगती होगी। अगर आप भी इन गर्मियों में किसी ऑफबीट जगह पर घूमना चाहते हैं, तो नई पीढ़ी कभी अपने गांव के दर्शन कर लीजिए।प्रकृति की सुंदरता से समृद्ध और विनम्र लोगों से पोषित ये गांव आपको दूसरी दुनिया में ले जाएंगे। तो, बिना किसी देरी के गांव की यात्रा की योजना बनाएं
******************वंशावली***
लेखक/संकलनकर्त्ता
- आदरणीय स्वर्गीय पीताम्बर दत्त भदूला जी।
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हमारे पूज्य परदादा श्री कृतराम जी के पूर्वजों के नाम तथा उनके मूल निवास का पता न होने के कारण यह वंशावली श्री कृतराम जी के समय से शुरू की जा रही है।
लोगों का कहना है कि हमारे परदादा जी दो भाई श्री कीडू पांडे और श्री लल्लू पांडे सर्वप्रथम जिला गढ़वाल पट्टी-बूंगी के अंतर्गत ग्राम- - झुड़ंगू पहुँचे। उनके पास काफी धन था। ग्राम झुड़ंगू में आने के पश्चात दोनों भाईयों ने सोचा कि एक जगह रहकर शायद हम विकास न कर सकें इसलिए उन्होंने निर्णय लिया कि बड़ा भाई कीडू पांडे उर्फ श्री कृतराम झुड़ंगू में रहेंगे और छोटा भाई लल्लू पांडे उर्फ श्री लालमणि ग्राम महेली पट्टी- इडियाकोट तल्ला जिला पौड़ी गढ़वाल में रहेंगे।
श्री कृतराम जी एक अनुभवी, कर्मठ एवं स्वावलम्बी व्यक्ति थे वे किसी के सामने झुकना नहीं चाहते थे। वह गरीबों की सेवा करने हेतु सदा तत्पर रहते थे। जब उनका क्षेत्र के लोगों से सम्पर्क हुआ तो लोगों ने उन्हें कभी कृतराम जी के नाम से नहीं पुकारा, वह उन्हें माता -पिता के दिए नाम कीडू जी के नाम से ही पुकारा करते थे और उन्हें भी इसी नाम से प्यार था । इसीलिए वह अपना नाम कीडू ही कहलाना पसन्द करते थे।
उनका "कीडू" नाम उन्हें ठीक ही मिला। कहा भी है 'जथोनाम तथो गुण' । कीड़ों (केंचुओं) को मिट्टी प्यारी होती है। इसी प्रकार हमारे परदादा जी श्री कीडू जी को मिट्टी से प्यार था। उन्होंने अपनी धन सम्पत्ति का सदुपयोग किया और जमीन खरीदने में धन को व्यय कर अपने कार्यकाल में ग्राम झुड़ंगू के अतिरिक्त पट्टी - बूंगी में ग्राम चाम सम्पूर्ण, ग्राम मंगेड़ी वल्ली सम्पूर्ण, ग्राम जमूण संपूर्ण ग्राम-कालाखाण्ड लग्गा झुड़ंगू सम्पूर्ण, ग्राम घोड़ाखांद एक भाग, ग्राम वसांणी लग्गा झुड़ंगू सम्पूर्ण, ग्राम कुभीसैंण लग्गा झुड़ंगू सम्पूर्ण, ग्राम बाड़ाधार सम्पूर्ण, ग्राम खड़ीला लग्गा झुड़ंगू सम्पूर्ण, ग्राम बुढाकोट सम्पूर्ण, ग्राम बियासी पल्ली का कुछ हिस्सा, ग्राम जालीखांद आदि तथा इड़ियाकोट में छ: रुपये रकमी जमीन ग्राम चैबाड़ा तथा एक-दो जगह और खरीद कर एक बहुत बड़ा साम्राज्य बनाया और पट्टी बूंगी के थोकदारों की थोकदारी से अपने उपरोक्त समस्त गांवों को तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर के द्वारा मुक्त कराकर थोकदारी का दर्जा हासिल किया। यद्यपि इसका उन्हें कोई मालिकाना नहीं मिलता था। वह गरीबों का हमेशा ध्यान रखते थे। जब उन्होंने देखा कि उनके क्षेत्र की जनता को वन विभाग के कर्मचारी तंग करते हैं तोउन्होंने अपने ग्राम के पांच मील रेडियस के क्षेत्र में जन-समाज को
राहत पहुंचाने हेतु व्यवस्था की व ग्राम बसांणी और ग्राम कुम्भीसैंण
के बीच एक बहुत बड़ा पत्थर जिसमें लोग खाना पका सके व सो
सकें पर वन विभाग के अन्दर अपना अधिकार करा दिया ताकि लोग बांस आदि कास्तकारी का सामान आसानी से ला सकें व उन्हें कोई परेशान न कर सके। मंदाल नदी के किनारे घने जंगल के बीच आज भी वह पत्थर कीडू पांडे का पत्थर कहलाता है ।
श्री कृताराम जी ने वन विभाग के अन्दर मंदाल नदी व रामगंगा नदी के किनारे हमारे जो बाड़ाधार व कालाखांड गांव पड़ते हैं उनके नाम से मछली मारने का हक प्राप्त कर जन-समाज को राहत दिलाई। उन्हें रिजर्व फॉरेस्ट के अन्दर भैंसे, छः ऊंट तथा एक हाथी के चुगान का हक प्राप्त था। कहते हैं उनकी अनेक पत्नियाँ थी जो अलग-अलग गांवों में रहकर वहां का कार्यभार संभालती थी। किन्तु सन्तान केवल एक से ही हुई ।
श्री कृतराम जी के पांच पुत्र थे। जिनके नाम क्रमश: सर्वश्री देवराम जी, लोकमणि जी, दत्तराम जी, उपेन्द्रदत्त जी तथा चन्द्रमणि जी थे। पांचों भाई अधिक समय तक साथ नहीं रह सके और इनमें से श्री देवराम जी, श्री लोकमणि जी तथा श्री दत्तराम जी अलग-अलग हो गए किन्तु श्री उपेन्द्रदत्त जी व श्री चन्द्रमणि जी काफी समय तक एक साथ रहे।
चूंकि श्री उपेन्द्र दत्त जी उस समय फॉरेस्ट रेंजर थे वह अपनी सर्विस के दौरान बाहर रहे इसलिए घर का सारा कार्यभार श्रीचन्द्रमणि जी पर रहा।
श्री कृतराम जी के पांचों पुत्रों की क्रमवार अलग-अलग वंशावली तथा प्रत्येक परिवार के सदस्यों के विषय में ज्ञात / प्राप्त संक्षिप्त जानकारी आगे दी जा रही है।
श्री कृतराम जी के पांच पुत्र :-
श्री देवराम जी
श्री दत्तराम जी
श्री लोकमणि जी
श्री चन्द्रमणि जी
श्री उपेन्द्र दत्त जी
श्री देवराम जी की वंशावली
***********श्री देवरामजी*******
श्री कृतराम जी के प्रथम पुत्र का नाम श्री देवराम जी था जिनके दो पुत्र श्री दयाराम जी व श्री सदानन्द जी हुए। श्री सदानन्द जी की पत्नी का नाम श्रीमती कुंवरी देवी था। श्री दयाराम जी के दो पुत्र श्री दामोधर प्रसाद व श्री श्रीपति प्रसाद थे। बड़ा भाई होने के नाते ग्राम झुड़ंगू, चाम, बांडाधार, खड़ीला, बसांणी, कुम्भीसैंण तथा कालाखांड की मालगुजारी श्री दयाराम जी के नाम हुई ।
श्री दयाराम जी के बड़े पुत्र श्री दामोधर प्रसाद बाद में मालगुजार हुए। छोटे भाई श्री श्रीपति प्रसाद की यद्यपि शादी हो गई थी और उनकी पत्नी का नाम श्रीमती बुथड़ी देवी था लेकिन कोई सन्तान नहीं रही। श्री दामोधर प्रसाद जी की पत्नी का नाम श्रीमती मूंगा देवी था। उनकी पांच सन्तानें - एक पुत्र तथा चार पुत्रियाँ हुई। पुत्र का नाम नरेन्द्र प्रसाद तथा पुत्रियों के नाम सावित्री देवी, दिक्का देवी, भागेश्वरी देवी तथा भारती देवी रखे गये।
नरेन्द्र प्रसाद की मृत्यु विद्यार्थी जीवन में ही हो गई अतः श्री दामोधर प्रसाद का दूसरा कोई पुत्र न होने के कारण मालगुजारी श्री दयाराम जी के छोटे भाई श्री सदानन्द जी व बाद में उनके पुत्रों के पास आई।
श्री सदानन्द जी के तीन पुत्र सर्वश्री मंगतराम जी, रेवाधर जी व श्री सीताराम जी तथा एक पुत्री श्रीमती कुन्ती देवी हुए । श्रीमती कुन्ती देवी का विवाह बडोली गांव (चौंदकोट) के श्री चण्डीप्रसाद बडोला के साथ हुआ।
बड़ा भाई होने के नाते मालगुजार श्री मंगतराम हुए लेकिन उनकी अल्पायु में मृत्यु हो गयी। वह व्यवहार कुशल व्यक्ति थे । उनकी पत्नी का नाम श्रीमती कौशल्या देवी था तथा उनका मायका बदरांण गांव में था ।
श्री मंगतराम जी के एक पुत्र तथा एक पुत्री हुए। पुत्र का नाम श्री रोशनलाल है। श्री रोशनलाल विद्युत विभाग से सेवानिवृत्ति के पश्चात देहरादून में निवास करते हैं। वह परिवार के सामूहिक कार्यों में उपस्थित रहते हैं। उनकी पत्नी का नाम श्रीमती उर्मिला देवी है तथा उनका मायका पोखड़ा (जिनोरा) है।
श्री रोशनलाल की चार पुत्रियाँ हैं जिनका नाम क्रमशः रुचि, कविता, इत्ती तथा प्रेरणा है। रुचि का विवाह रणकोट (देवप्रयाग) के ध्यानी परिवार में तथा इत्ती का विवाह टिहरी के कुकशाल परिवार में हुआ है। कु0 कविता व कु0 प्रेरणा का अभी विवाह प्रतिक्षारत हैं।
श्री मंगतराम जी की पुत्री का नाम कलावती है जिसका विवाह गुजरी गांव (पट्टी पैनों) के श्री ओमप्रकाश देवरानी के साथ सम्पन्न हुआ। श्री मंगतराम जी की मृत्यु के उपरांत चूंकि उनका पुत्र श्री रोशनलाल नाबालिग थे अतः दूसरे भाई श्री रेवाधर जी ने मुख्तियारनामा अपने नाम करवाकर मालगुजारी अपनी मृत्यु तक चलाई यद्यपि वह समीपी क्षेत्रों में वन विभाग में कार्यरत थे।
श्री रेवाधर जी की पत्नी का नाम श्रीमती महेश्वरी देवी है तथा है उनका मायका नौनियाखेत है। श्री रेवाधर जी के दो पुत्र तथा एक पुत्री हुए। बड़े पुत्र का नाम श्री सतीशचन्द्र था । उनकी पत्नी का नाम श्रीमती शान्ति देवी है और उनका मायका बुढ़ाकोट (भिंडईसारी) है। श्री सतीशचन्द्र के तीन पुत्र तथा दो पुत्रियाँ हुई। सबसे बड़े पुत्र का नाम श्री जितेन्द्र कुमार है। उसकी पत्नी श्रीमती दर्शनी देवी का मायका नैखण गांव के मधवाल परिवार में है। दूसरे पुत्र का नाम श्री विजय प्रकाश है। उसकी पत्नी श्रीमती वीना असूंगाड़ गांव की है। तीसरे पुत्र श्री सत्यप्रकाश की अभी शादी नहीं हुई ।
श्री सतीशचन्द्र की बड़ी पुत्री का नाम श्रीमती लता देवी है। उसकी शादी पंजारा गांव में हुई है। दूसरी पुत्री का नाम श्रीमती सरिता देवी है तथा उसकी ससुराल कालागढ़ में है।
श्री रेवाधर जी के दूसरे पुत्र श्री हरीशचन्द्र पशुपालन विभाग में कार्यरत हैं। उनकी पत्नी का नाम श्रीमती नन्दादेवी है जिनका मायका बिल्कोट गांव में है। श्री हरीशचन्द्र के तीन पुत्र हैं। सबसे बड़ा पुत्र श्री जयप्रकाश वायुसेना में कार्यरत है। दूसरे पुत्र श्री विजय प्रकाश ने बी0टेक किया है तथा तीसरा पुत्र श्री अमित प्रकाश पॉलीटेक्निक करने के पश्चात टाटा कम्पनी में कार्यरत है। श्री रेवाधर जी की पुत्री सत्तू देवी की शादी बसोली गांव के सुन्दरियाल परिवार में हुई थी।
श्री सदानन्द जी के तीसरे पुत्र श्री सीताराम जी पहले बंगाल इंजीनियरिंग ग्रुप में रेगुलर आर्मी में इंस्ट्रक्टर थे। वहां से सेवानिवृत्ति के पश्चात बतौर सविलियन फोरमैन के पद पर कार्य करते रहे। वह मृदुभाषी तथा व्यवहार कुशल व्यक्ति थे। वह शुरू से रुड़की में रहे और रुड़की इतना रास आया कि आज उनके पुत्रों ने अपने-अपने मकान वहीं बना लिए।
श्री सीताराम जी की दो पत्नियां थीं। पहली पत्नी का नाम श्रीमती विशेश्वरी देवी था। उनके दो पुत्र श्री मोहनचन्द्र व श्री सुभाषचन्द्र हैं। दूसरी पत्नी श्रीमती गोविन्दी देवी जिनका मायका पंजारा गांव में है के चार पुत्र सर्वश्री सुरेन्द्र, सत्येन्द्र, राकेश व अनिल
तथा एक पुत्री वीना हुए। प्रत्येक के विषय में संक्षिप्त जानकारी निम्न प्रकार है :-
श्री सीताराम जी के सबसे बड़े पुत्र का नाम श्री मोहनचन्द्र हैं जो विद्युत विभाग में हेड क्लर्क के पद सेवानिवृत्त हो चुके हैं, उनकी पत्नी श्रीमती प्रभा देवी का मायका डुंगरी गांव में है। इनकी दो पुत्रियाँ - कु0 रूपिका व कु० दीपिका तथा एक पुत्र श्री विकास आई0टी0सी0 में सहा0 लेखा अधिकारी के पद पर कार्यरत है। बड़ी पुत्री रूपिका की ससुराल पांड गांव में है।
श्री सीताराम जी के दूसरे पुत्र श्री सुभाषचन्द्र आई0आर0आई0 राजस्थान में सहा0 अभियंता के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इनकी पत्नी श्रीमती विजयलक्ष्मी का मायका सिसई गांव में है। इनके दो पुत्र तथा एक पुत्री है। बड़ा पुत्र श्री गौरव बी0ई0 करने के पश्चात टी0सी0एस0 कम्पनी में इंजीनियर है, दूसरा पुत्र श्री राहुल शेयर मार्केट में कार्यरत है। कु0 मेघा एम0बी0ए0 करने के पश्चात जॉब कर रही है।
श्री सीताराम जी के तीसरे पुत्र श्री सुरेन्द्र कुमार नौकरी छोड़कर घर के अतिरिक्त सामाजिक कार्यों में संलग्न रहते हैं, वह नाते-रिश्तेदारी में सभी भाईयों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह ग्राम प्रधान भी रह चुके हैं। उनकी पत्नी श्रीमती सर्भमंगला का मायका खिरसू मुड़ियाप गांव में
है। उनकी दो पुत्रियाँ तथा एक पुत्र है। बड़ी पुत्री कु० रूपाली एम०एस०सी० बी0एड0 करने के पश्चात इंटर कॉलेज में अध्यापिका हैं, दूसरी पुत्री कु० मनाली भी एम०सी०ए० करने के पश्चात जॉब करती है तथा पुत्र श्री प्रशान्त बी0टेक (0 है।
श्री सीताराम जी के चौथे पुत्र श्री सत्येन्द्र कुमार इंजीनियर के पद पर कार्यरत हैं। इनकी पत्नी श्रीमती अमिता का मायका रांई गांव के चन्दोला परिवार में है। वह एम0एस0सी0 करने के पश्चात अध्यापिका है। इनके पुत्र श्री सिद्धार्थ बीटेक करने के पश्चात सहा0 अभियन्ता के पद पर कार्यरत है तथा पुत्री कु0 अंकिता डॉक्टर (बी०डी०एस० ) है।
श्री सीताराम के पांचवे पुत्र श्री राकेश कुमार एम0ई0एस0 में जू0 इंजीनियर के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं और पुन: पेयजल में जू0 इंजीनियर के पद पर कार्यरत है। इनकी पत्नी श्रीमती अनिता का मायका खिरसू मुडियाप गांव में है। इनका एक पुत्र श्री अभिनव बी0टेक करने के पश्चात सेना में कैप्टेन के पद पर कार्यरत है तथा पुत्री कु0 अनुभा ने बी.टेक. किया है।
श्री सीताराम जी के छठे व सबसे छोटे पुत्र श्री अनिल कुमार
एम0ई0एस0 में जू) इंजीनियर के पद पर कार्यरत है। इनकी पत्नी
श्रीमती अनोधी का मायका तोली गांव में है। इनके दो पुत्र हैं श्री हर्ष
तथा श्री अभिषेक दोनों बी0टेक) हैं।
श्री सीताराम जी की मात्र एक पुत्री श्रीमती बीना एम0ए0बी0एड0 करने के पश्चात अध्यापिका के पद पर कार्यरत है। उसकी ससुराल हरिद्वार में हैं। श्रीमती बीना के पति श्री मनमोहन बी0ई0एल0 में इंजीनियर के पद पर कार्यरत है।
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लेखक/संकलनकर्त्ता
- आदरणीय स्वर्गीय पीताम्बर दत्त भदूला जी।
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village-Jhurangu Jhurangu is small village located in dhumakot Tehsil of Pauri Garhwal district, Uttarakhand with total 40 families residing
Jhurangu is a small village, situated at the border of Corbett national park Uttarakhand, on the foothills of the Shivalik Range of Himalayan Mountains.
Jhurangu is a village panchayat located in the Pauri Garhwal district of Uttarakhand state,India. The latitude 30.19 and longitude 78.04 are the geocoordinate of the Jhurangu. Jhurangu village is situated in the buffer Zone of Corbett National Park.
पाठको से निवेदन: प्रिय दोस्तो, यह मेरा हिन्दी में पहला लेख है। हम उत्तर भारतीयों के लिये हिन्दी बोलना जितना आसान है, कम्प्यूटर पर लिखना उतना ही मुश्किल। स्वभाविक है व्याकरण की काफ़ी गलतियॉ होगीं, कृप्या नजर-अदांज न करें, टिप्पणी अवश्य करें जिससे भविष्य के लिये मदद मिल सके। समय की बहती धारा एव आधुनिकीकरण की दौर मे हम लोग भी अपनी संस्कृति को खोते जा रहे है ! आने वाली पीड़ी एक अपनी संस्कृति को खोज भी नही पायेगी क्योकि इतिनी तेजी से यदि हमारा संस्कृति बदलती रही तो इसका अस्तित्व ढूदना मुश्किल हो जायगा. ! उतराखंड सौंदर्य का जीवन्त प्रतीक है, सरलता एवं गरिमा का अभिषेक है और सभ्यता एवं संस्कृति इसकी विशिष्ट पहचान है। यहाँ प्रकृति और जीवन के बीच ऐसा सामंजस्य हैं जो सभी पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को मंत्रमुग्ध कर देता है। यहाँ की शीतल हवा शान्ति की प्रतीक हैं तो फलदार वृक्ष दान की महिमा का गुणगान करते हैं। यहाँ के लोक जीवन में परंपराएँ, खेल-तमाशे, मेले, उत्सव, पर्व-त्यौहार, चौफुला-झुमैलो, दैरी-चांचरी, छपेली, झौड़ो के झमाके, खुदेड़ गीत, ॠतुरैण, पाण्डव-नृत्य, संस्कार सभी कुछ अपने निराले अन्दाज में जीवन को सजाते हैं।
झुरंगुकेलोगअधिकांशबाहरशहरोंमेंबसगएहैं, झुरंगु हल्दूखाल से लगभग 5km दूर हैं यहाँ जाने के लिए जंगल से होकर गुजरना पड़ता
हैं ,अब तो झुरंगु तक रोड बनी
हुई हैं झुरंगु के लिए पहली से रोड बुड़ाकोट
से श्री पी डी भदूला ने अपने प्रधान कार्याकाल में बना दी थी और अब हल्दूखाल से कमंदा मोटर मार्ग
बनने से यहाँ के लोगों को काफी राहत मिली, बुडाकोट से झुरंगु यहां
तक लोग टैक्सी या अपनी निजि वाहन से जा सकते हैं, झुरंगु का निकटतम मार्केट हल्दूखाल हैं यही
मैन मार्किट हैं , ब्लॉक नैनीडांडा हल्दूखाल
से १३ किलो मीटर हैं
यहाँ से बूंगी माता का मंदिर लगभग 5.00 किलो मीटर दूर हैं, झुरंगु चारोँ और से जंगल से घिरा हुआ हैं यहॉ
से दूर- दूर तक कॉर्बेट नेशनल पार्क का नजारा
देख सकते हैं यहा की सबसे नजदीक नदी मंडाल नदी हैं ।सनातन धर्म में देवी का वास मुख्य रूप से पहाड़ों पर माना गया है, तभी तो पहाड़ों वाली माता का नाम भी उन्हें दिया गया है। ऐसे में आज हम आपको पहाड़ों में बने देवी मां के प्रमुख मंदिरों के बारे में बता रहे हैं, जिनके संबंध में यह मान्यता है कि देवी मां आज भी यहां निवास करती हैं। ऐसे में आज हम आपको देवभूमि में बने देवी मां के उन प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि यहां आज भी चमत्कार होते हैं...
अगर आप प्रकृति प्रेमी हैं तो आप को हर चीज़ में सुंदरता नज़र आएगी- प्रकृति प्रेमी अमित भदुला
सुजान से मंडाल नदी का एक दृश्य (Mandal river)
Jhurangu is surrounded by forest.
Ramnagar , Kotdwara , Pauri , are the nearby Cities to Jhurangu.
Demographics
of Jhurangu
Hindi is the Local Language and garhwali boli .
HOW
TO REACH Jhurangu:
How to reach?
Village Jhurangu
which is connected to road route from haldukhal cities like kotdwara,
ramnagar etc.
Jhurangu is well connected by road with major towns and
cities of the region like, Dehradun, Rishikesh, Haridwar and so on.
Tehri-Moradabad State Highway connects major destinations of the
district like, Lansdowne, Kotdwar and Srinagar.
It is also connected by road to haldukhal, budakot.
) ,
Climate
The climate of Jhurangu,Pauri Garhwal is very cold in winter and pleasant in summer. In rainy season the climate is very cool & full of greenness. However, in Kotdwar and the adjoining Bhabar area it is quite hot reaching high 40s Celsius during the summer.and in winter session it remained heavy snow fall most part of the pauri district.
Mainly Tiger, more than 50 bird species, Leopard, tiger, guldar,Pig,gibbon,चित्तल,deer,monkey, Black buck, Barking deer, Himalyan black beer, Chital etc.and natural air flows
Education
Govt. Degree College, Nainidanda, Pauri Garhwal has been established in July 2006. Govt. Degree College Nainidanda is affiliated to the HNB University Srinagar (Garhwal University), Uttarakhand for 3 yrs for degree courses in Commerce.
Established:2006
Affiliation:HNB Garhwal University
Courses:B.Com, BA, BSc, BEd, MA, MSc
Category:College
HNB Garhwal University. This College is a centre of higher education in the Himalayan region block Nainidanda, Tehsil Dhumakot, Dist – Pauri Garhwal, Uttarakhand. The College is surrounded by picturesque foot hills of the Great Himalayas. This provides the peaceful environment for studies.
Address :Government Degree College, Nainidanda,
PO- Patotia, Pauri Garhwal – 226277, Uttarakhand, India.
Courses Offered in Nainidana PG Degree College
B.Com (Bachelors of Commerce)
B.A (Bachelors of Arts)
B.Sc (Bachelors of Science)
M.A (Masters of Arts)
M.Sc (Masters of Science)
BEd (Bachelors of Education)
HALDUKHAL INTER COLLEGE:
Haldukhal Inter College
Haldukhal:
Jhuranguके नजदीक बाजारhaldukhalहै (nearest market of jhurangu)
Haldukhal is a village located in the Pauri Garhwal district of Uttarakhand, India. It is known for its scenic beauty and is surrounded by the picturesque hills of the Garhwal region. The area is rich in culture and traditions, with a strong emphasis on local deities, including Bungi Devi Maa, which plays an important role in the spiritual life of the residents.
Haldukhal is also a gateway to various trekking routes and offers opportunities to explore the natural beauty and wildlife of the region.
PHOTOGRAPHS OF HALDUKHAL:
Haldukhal G.M.O.U bus stop
Haldukhal
Hadukhal ki jhalak Bungi Mata Temple:Bungi Devi Hadukhal
https://youtu.be/vkpco-oZocw
बुंगी देवी मंदिर, हल्दुखाल
विवरण
'बुंगी देवी मंदिर' गढ़वाल के धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर हिन्दू देवी माँ भगवती बुंगी को समर्पित है।
उत्तराखंड राज्य के पौड़ी जिले से 70 किलोमीटर दूर ब्लॉक nainidanda के हल्दुखाल देवी डांडा में स्थित यह भव्य एंव आकर्षक मंदिर मां बूँगी देवी का है। उत्तराखंड के प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में ख्याति प्राप्त बूंगी देवी मंदिर देवी भक्तों के लिए पूजनीय है।
यहां आने वाले भक्तों को सांसारिक भागमभाग से अलग अनोखा सुकून मिलता है। गढ़वाल की शिवालिक मनोरम पहाड़ियों में स्थित बियाशी गांव में यह मंदिर स्थित है। यहां के लोगो का कहना है कि आदि काल से ही देवी का निवास स्थान रहा है।मां दुर्गा देवी को शक्ति उपासना का प्रमुख केंद्र माना जाता है। मां बूंगी को क्षेत्र की रक्षिका के रूप में जानी जाती है। मां उल्का के मंदिर में दूर-दूर से लोग पूजा करने आते है। यहां नवरात्र के प्रारम्भ से ही भक्तों की प्रतिदिन भीड़ लगी रहती है। मां देवी अपने भक्तों को भयमुक्त और उनकी रक्षा करती हैं। नवरात्र के दौरान महाष्टमी और नवमी को बुंगी देवी के मंदिर में हजारों श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए आते हैं। सप्तमी को महानिशा पूजा, अष्टमी को महागौरी और नवमी को सिद्धिदात्री देवी के पूजन के बाद हवन और कन्या पूजन में भक्तों की भीड़ जुटती है।
उत्तराखंड राज्य के पौड़ी जिले से 70 किलोमीटर दूर ब्लॉक nainidanda के हल्दुखाल, देवी डांडा में स्थित यह भव्य एंव आकर्षक मंदिर मां बूँगी देवी का है। उत्तराखंड के प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में ख्याति प्राप्त बूंगी देवी मंदिर देवी भक्तों के लिए पूजनीय है।
यहां आने वाले भक्तों को सांसारिक भागमभाग से अलग अनोखा सुकून मिलता है। गढ़वाल की शिवालिक मनोरम पहाड़ियों में स्थित बियाशी गांव में यह मंदिर स्थित है। यहां के लोगो का कहना है कि आदि काल से ही देवी का निवास स्थान रहा है।मां दुर्गा देवी को शक्ति उपासना का प्रमुख केंद्र माना जाता है। मां बूंगी को क्षेत्र की रक्षिका के रूप में जानी जाती है। मां उल्का के मंदिर में दूर-दूर से लोग पूजा करने आते है। यहां नवरात्र के प्रारम्भ से ही भक्तों की प्रतिदिन भीड़ लगी रहती है। मां देवी अपने भक्तों को भयमुक्त और उनकी रक्षा करती हैं। नवरात्र के दौरान महाष्टमी और नवमी को बुंगी देवी के मंदिर में हजारों श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए आते हैं। सप्तमी को महानिशा पूजा, अष्टमी को महागौरी और नवमी को सिद्धिदात्री देवी के पूजन के बाद हवन और कन्या पूजन में भक्तों की भीड़ जुटती है।
यहाँ पहुँचने के लिए पैदल का ही रास्ता हैं हल्दुखाल से लगभग दो किलोमीटर का पैदल रास्ता हैं यहां दूर - दूर से लोग बूंगी माँ के दर्शन के लिए आते हैं मंदिर से दूर दूर का प्राकृतिक नजारा(Natural sight)देखने को मिलता हैं और मन को शांति मिलती हैं भक्त यहां आकर मन में संतोष व शांति का अनुभव करते हैं. माता बुंगी देवीजी के दर्शन करने जो एक बार आता है, वह बार-बार आना चाहता है
कहा जाता है कि ग्रामीणों ने आठवीं शताब्दी में बुंगा देवी की मूल प्रतिमा यहाँ स्थापित करवाई थी। लेकिन अब यहाँ प्राचीन मूर्ति नहीं हैं लेकिन आज भी यह स्थान पूजनीय हैं
कहा जाता हैं जहाँ पर माता का मंदिर हैं वहाँ पर एक पानी का तालाब/ कुंड था जबकि यह देवी डंडा की सबसे ऊंची चोटी पर हैं । और दूसरा मंदिर से एक सुरंग सीधे मंदाल नदी देवी रॉ तक हैं इस देवी रो में माता नहाने जाती हैं
कहा जाता हैं कि हर नवरात्री पे माता ग्रामीणों को बूढी महिला के रूप में दर्शन देती हैं और माँ का शेर भी मंदिर के दर्शन के लिए आता हैं
यहा से आप कॉर्बेट नेशनल पार्क , कालागढ़ डेम, छोटे छोटे विलेज, हिल्स , और नदिया देख सकते हें यहा से गुरंगु , बुढ़ाकोट , हल्दूखाल , बिलकोट , नैनीडांडा के पहाड़ियां , कमांदा, अनेक गाँवों की मनोरम छटा देखने को मिलती हैं
The most common mode of transport is either bus or taxi. Bus services are provided by the state-run Uttarakhand Roadways, Garhwal Motor Owner Union (GMOU) Ltd. and Garhwal Mandal Vikas Nigam (GMVN) Ltd. Operations of the Uttarakhand Roadways are limited mainly to Inter-state routes and major cities/towns of the district/state. GMOU Ltd. is the largest bus service provider of the district, providing services to almost all places of the district. The services of GMU Ltd. are limited to comparatively smaller area adjoining the Kumaon division. Also there are a number of Taxi Unions in many towns of the district, providing services for almost every stretch of the road.
The only railway station of the district is at Kotdwara, which was established by the British as early as 1889. As Pauri Garhwal district is situated at the Shiwalik range, the outermost range of the Himalayas, its hills are very inconsistent. As a result it is not considered feasible to extend the railways network.
Pauri Garhwal district does not have any regular air services. The nearest airport is Jollygrant, Dehradun, about 155 km from Pauri and about 120 km from Kotdwara.
Tour maidaban to ram nagar :
mandal river
Lohachaur: The Ramganga River and Mandal River streams enrich the water bodies of this region. The rivers add to the beauty of this wild forest.
Lohachaur
उत्तराखंड से पलायन मजबूरी
महानगरीय चकाचौंध तलेहमारे देश का एक बड़ा तबका बड़े शहरों में अपना जीवन ज्यादासुखी देखताहै उत्तराखंड की हमारी आज की नौजवानपीड़ी अपने गावो से लगातार कटती जा रही है ।रोजी रोटी की तलाश में घर से निकला यहाँ का नौजवानअपने बुजुर्गो की सुध इस दौर में नहीं ले पा रहा है ।यहाँ के गावो में आज बुजुर्गो की अंतिम पीड़ी रह रही है और कई मकान बुजुर्गो के निधन के बाद सूने हो गए हैं ।आज आलम यह है दशहरा ,दीपावली ,होली सरीखे त्यौहार भी इन इलाको में उस उत्साह के साथ नहीं मनाये जाते जो उत्साह बरसो पहले संयुक्तपरिवार के साथ देखने को मिलता था । हालातकितने खराब हो चुके हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है आज पहाड़ो में लोगो ने खेतीबाड़ीजहाँ छोड़ दी है वहीँ पशुपालन भी इस दौर में घाटे का सौदा बन गया है क्युकि वन सम्पदा लगातारसिकुड़ती जा रही है और माफियाओ,कारपोरेटऔर सरकार का काकटेलपहाड़ो की सुन्दरता पर ग्रहण लगा रहा है ।पहाड़ो में बढ़रहे इस पलायन पर आज तकराज्य की किसीभी सरकारों ने कोई ध्यान नहीं दिया शायद इसलिए अब लोग दबी जुबानसे इस पहाड़ी राज्य के निर्माण और अस्तित्व को लेकर सवाल उठाने लगे हैं ।
आज उत्तराखंड बने 12 वर्ष हो गए हैं लेकिन यहाँ जल ,जमीन और जंगल का सवाल जस का तस बना हुआ है । स्थाई राजधानी तक इन बारह वर्षोमें तय नहीं हो पाईहै । विकास की किरण देहरादून, हरिद्वार,हल्द्वानीके इलाको तक सीमित हो गई है ।नौकरशाही बेलगाम है तो चारो तरफ भय का वातावरण है । अपराधो का ग्राफ तेजी से जहाँबढ़ रहा है वहीँ बेरोजगारी का सवाल सबसे बड़ाप्रश्नपहाड़ के युवक के सामने हो गया है।बिजली,पानी, सड़क जैसी बुनियादी समस्याओ से पहाड़ के लोग अभी भी जूझ रहे हैं ।अस्पतालों में दवाई तो दूर डॉक्टर तक आने को तैयार नहीं है । वहीँ जनप्रतिनिधि इन समस्याओ को दुरुस्त करने के बजाए अपने विधान सभा छेत्रो से लगातार दूर होते जा रहे हैं । उन्हें भी अब पहाड़ी इलाको के बजाए मैदानी इलाको की आबोहवा रास आने लगी है और शायद इसी के चलते राज्यके कई नेता अब मैदानी इलाको में अपनी सियासी जमीन तलाशने लगे हैं ।राज्य में उर्जाप्रदेश, हर्बल स्टेट के सरकारी दावे हवा हवाई साबित हो रहे हैं ।
जिस अवधारणा को लेकर उत्तराखंड राज्य की लड़ाई लड़ी गई थी वह अवधारणा खोखली साबित हो रही है और शहीदों केसपनो का उत्तराखंड अभी कोसो दूर है क्युकिइस दौर की सारीकवायद तो इस दौर में अपनी कुर्सी बचाने और दूसरेको नीचा दिखानेऔर कारपोरेटके आसरे विकास के चकाचौध की लकीर खींचने पर ही जा टिकी है जहाँ आम आदमी के सरोकारों से इतरमुनाफा कमाना ही पहली और आखरी प्राथमिकता बन चुकाहै । ऐसे में हमारे देश के गाँव विकास की दौड़ में कही पीछे छूटते जा रहे हैं और अपने उत्तराखंड की लकीर भी भला इससे अछूती कैसे रह सकतीहै जहाँ सरकारे पलायन के दर्द को समझनेसे भी परहेज इस दौर में करने लगी हैं । पहाड़ी क्षेत्रों में तेजी से हो रहा पलायन रुकने का नाम नहीं ले रहा है. एक के बाद एक कर सभी गांव खाली होते जा रहे हैं. लेकिन आज तक प्रदेश में बनी किसी भी पार्टी की सरकार ने कोई ठोस नीति तैयार नहीं की है.
पौड़ी में भी कई गांव ऐसे हैं जो 90 प्रतिशत खाली हो चुके हैं जहां पर अब केवल जंगली जानवर ही रहते हैं. प्रदेश का सबसे बड़ा जिला कहे जाने वाले पौड़ी सरकारी आंकड़े भी पलायन के सच को उजागर करते हैं. लोगों का कहना है कि राजनीतिक दल के पास पहाड़ों के विकास के लिये कोई ठोस नीति नही है.
पौड़ी जिले के कल्जीखाल, कोट, द्वारीखाल, जयहरीखाल,जैसे ब्लॉकों के चार दर्जन से अधिक गांव में 90 प्रतिशत से भी अधिक लोग गांव छोड़कर जा चुके हैं. इनमें कई गांव ऐसे हैं जहां पर एक या दो परिवार ही बचे हैं.
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश से अलग कर नया उत्तराखंड राज्य इसलिए बनाया गया था ताकि इस पहाड़ी प्रदेश का विकास हो सके. लेकिन अलग राज्य बनने के बाद भी हालत खराब होते चली गई है.
उत्तराखउत्तराखंड में पलायन त्रासदी बन गया है। सैकड़ों गांव खाली हो गए। गांव में सिर्फ हमारे देवता है या बंजर पड़े खेत हैं।
वर्ष 2000 में उत्तराखंड के अस्तित्व में आने के बाद से आज 16 सालों के बाद भी उत्तराखंड में व्यापक तौर पर क्या बदला ये कहना मुश्किल है।
स्वास्थ का हाल ऐसा हैं कि पहाड़ की दूरदराज की जनता समय पर इलाज न मिलने के कारण रास्तों पर दम तोड़ने पर मजबूर हैं या फिर मरीज़ों को हल्द्वानी, बरेली, दिल्ली या लखनऊ रिफर किया जा रहा है। शिक्षा की स्थिति भी बहुत अच्छी नही कहीं जा सकती। शिक्षा के क्षेत्र में जो संस्थान खुले भी हैं क्या उनमें शिक्षा से ज्यादा ज़ोर मनी मेकिंग पर नहीं है। उत्तराखंड के सरोकारों से शायद ही इनका कोई वास्ता हो। पिछले 15 सालों में उत्तराखंड में एक ऐसा स्थानीय माफिया तंत्र विकसित हुआ है जिसने सत्ता के साथ मिलकर अकूत पैसा बनाने का काम किया है। क्या किसी राज्य में विकास का अक्स और भविष्य की दशा और दिशा देखने के लिये गुज़रा हुए 16 सालों का वक्त कुछ कम तो नहीं।
पहचान और विकास की चाह की वजह से पहाड़ों में जिस जनांदोलन की शुरुआत हुई थी, वो 12 साल में ही निरर्थक हो गया। आज विडंबना यह है कि अलगाव की वो काली छाया उत्तराखंड के पहाड़ों को आहिस्ता-आहिस्ता अपनी चपेट में ले रही है।1000 में से 350.71 प्रदेशवासी अच्छी शिक्षा और नौकरी की तलाश में दूसरे रायों में जा चुके हैं,जबकि 7.014 फीसदी लोग दूसरे देशों की ओर पलायन कर चुके हैं। पलायन के जो आंकड़े सामने आए हैं उनसे राज्य में अपनाए गए विकास के मॉडल पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं।
मालूम हो कि पिछले दिनों केंद्र सरकार के नेशनल सैंपल सव्रे ऑर्गेनाइजेशन (एनएसएसओ) की रिपोर्ट ‘माइग्रेशन इन इंडिया’ में यह दिलचस्प तथ्य सामने आया था कि उत्तराखंड में गांवों से नहीं बल्कि शहरों से यादा पलायन हो रहा है। माइग्रेशन इन इंडिया रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड में प्रति हजार लोगों पर शहरों से 486 लोग पलायन कर रहे हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह तादाद 344व्यक्ति प्रति हजार है। इसमें बड़ा हिस्सा उन लोगों का है जो रोजगार की तलाश में अपना गांव-शहर छोड़ रहे हैं। शहरों से प्रति हजार पुरुषों में 397 तो प्रति हजार महिलाओं में 597 पलायन कर रही हैं, जबकि गांवों में तस्वीर यह है कि प्रति हजार पुरुषों में से 151 और प्रति हजार महिलाओं में 539 महिलाएं गांवों से पलायन कर रही हैं।
बीमार होने पर डाक्टर नहीं, बच्चों के लिए शिक्षक नहीं,जानवरों के लिए दवा-दारू नहीं, खेतों में हाड़तोड़ मेहनत के बावजूद छह माह का भी अनाज नहीं, पेयजल के नाम पर बिछी पाईप लाईनों का अता-पता नहीं, खेतों में की गई मेहनत पर जंगली जानवरों का डाका, सूर्यास्त के बाद का समय छोड़िए भरे-पूरे दिन में भी बाघ के हमले का डर, इस सबमें कि दुखड़ा सुनने के लिए न प्रधान-न पटवारी। सोचिए, ऐसे हालात में गांव छोड़कर किसी शहरी बस्ती में जाने के सिवा भी चारा क्या रह जाता है...! यह पलायन नहीं है, एक मजबूरी है अपने जीवन को सुरक्षित बचाने की।
16-17 जून 2013 को आसमान से बरपे कहर के बाद यह मजबूरी भी अब जरूरी हो गई है। इस जलप्रलय के बाद पहाड़ की नदियां खूंखार लगने लगी हैं, घाटियां भयानक नजर आने लगी हैं, हिमशिखर श्वेत प्रेत से प्रतीत हो रहे हैं,आसमान में गरजते बादल काल की दहाड़ सा डरा रहे हैं। चोटियां न जाने कौन पत्थर लुढ़ककर जान ले ले...कहीं भी प्राण रक्षा के आसार नजर नहीं आ रहे। हर पल मौत के आगोश में लग रहा है। गत दो-तीन सालों से यह सब हो रहा था, लेकिन इस बार जब लोग भगवान की चौखट पर भी सुरक्षित नहीं बचे, तो आम चौखटों की क्या बिसात...।वहां की सरकार नदारद थी.
संकट के उस वक्त में अधिकांश विधायकों से लेकर मंत्रियों तक कोई भी अपने निर्वाचन क्षेत्र में मौजूद नहीं था. 21वीं सदी के उत्तराखंड में तीन-तीन महीने तक खाद्यान्न नहीं पहुंच पाया, आठ महीने में भी सड़कें ठीक नहीं हो पाईं. पहाड़ों के हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि हर साल हजारों लोग वहां से मैदानों की ओर पलायन कर रहे हैं. गांव उजड़ रहे हैं और पूरा पहाड़ इतिहास के सबसे बड़े विस्थापन के मुहाने पर खड़ा है. पहाड़ों के प्रति यह उपेक्षा राज्य बनने के बाद ही शुरू हुई है.
लगभग सारे विधायकों और मंत्रियों ने अपने आशियाने देहरादून या हल्द्वानी में बना लिए हैं. एक भी विधायक अपने निर्वाचन क्षेत्र में रहने को तैयार नहीं है. उत्तराखंड के सांसदों के घर दिल्ली में तो हैं पर पहाड़ में नहीं. संसदीय क्षेत्र या विधानसभा क्षेत्र उनके लिए पर्यटन स्थल बनकर रह गए हैं. विधायकों, मंत्रियों और सांसदों की देखादेखी जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुखों से लेकर ग्राम प्रधान तक या तो मैदानों में उतर आए हैं या फिर गांव छोड़कर जिला मुख्यालयों में डेरे जमाए बैठे हैं.
देखा जाए तो पहाड़ का हमेशा ही कठिन जीवन रहा है,लेकिन विकट दुष्वारियों के समक्ष इसके बाशिंदों ने हार नहीं मानी। दूर-दराज मैदानी भागों में अथवा फौज में नौकरी कर लोगों ने घर-परिवार चलाए, पर अपने पूर्वजों की थाती को नहीं छोड़ना मुनासिब नहीं समझा। हालांकि धीरे-धीरे सुविधाओं की ललक और बदलते राष्ट्रीय परिवेश की हवा लोगों को गांवों से शहरों की ओर खींचने को मजबूर करने लगी।
पहाड़वासियों की सुविधाओं की यह तलाश उनकी बेहद मजबूरी का फैसला थी, जिसे पलायन कहकर पुकारा गया। इस पलायन को रोकने के नाम पर सियासतदां,अधिकारी और कथित समाजसेवी सभी मौके के हिसाब से आलाप-प्रलाप करते रहे, लेकिन इस पलायन की तह तक जाकर उसका निदान करने की ठोस कार्ययोजना कतई नहीं तैयार की गई। लोगों के अपने घरबार की आजाद हवा छोड़कर शहरों के संकुचित क्षेत्र में आ बसने के पीछे के दर्द को समझा तक नहीं गया।लंबे आंदोलन और शहादत के बाद राज्य मिला, उम्मीद थी कि पृथक राज्य में उनकी विकास की कल्पनाओं को पंख लगेंगे और पड़ोस के पहाड़ी राज्य हिमाचल सरीखा उत्तराखंड भी तरक्की की राह सरपट दौडे़गा। दौड़ता भी क्यों नहीं, प्रकृति ने इस क्षेत्र को नियामतें देने में कोई कंजूसी जो नहीं की थी।
पहाड़वासियों को अलग राज्य तो मिल गया, पर विरासत में वह संस्कार और सोच नहीं मिल पाए जो ‘कालापानी’ को देवभूमि बना पाते। उत्तर प्रदेश से राज्य को मिले अधिकारी-कर्मचारी पहाड़ चढ़ने को राजी नहीं हुए। यहां तक कि जो मुलाजिम पहाड़ी मूल के भी थे, उन्होंने राज्य के मैदानी हिस्सों में ही पांव जमाए और पहाड़ से संबंध सिर्फ मूल निवास-जाति प्रमाण पत्र लेने या फिर किसी‘दैवी कृपा’ की चाह में अपने कुल देवी-देवता के दरबार में एक-आध घंटा जाकर मत्था टेकने तक ही सीमित रहा। पहाड़ स्थित अपने घर-गांव से कोई मोह नहीं, बिछोह की कोई तड़फन नहीं।
बीमार होने पर डाक्टर नहीं, बच्चों के लिए शिक्षक नहीं,जानवरों के लिए दवा-दारू नहीं, खेतों में हाड़तोड़ मेहनत के बावजूद छह माह का भी अनाज नहीं, पेयजल के नाम पर बिछी पाईप लाईनों का अता-पता नहीं, खेतों में की गई मेहनत पर जंगली जानवरों का डाका, सूर्यास्त के बाद का समय छोड़िए भरे-पूरे दिन में भी बाघ के हमले का डर, इस सबमें कि दुखड़ा सुनने के लिए न प्रधान-न पटवारी। सोचिए, ऐसे हालात में गांव छोड़कर किसी शहरी बस्ती में जाने के सिवा भी चारा क्या रह जाता है...! यह पलायन नहीं है, एक मजबूरी है अपने जीवन को सुरक्षित बचाने की।
16-17 जून 2013 को आसमान से बरपे कहर के बाद यह मजबूरी भी अब जरूरी हो गई है। इस जलप्रलय के बाद पहाड़ की नदियां खूंखार लगने लगी हैं, घाटियां भयानक नजर आने लगी हैं, हिमशिखर श्वेत प्रेत से प्रतीत हो रहे हैं,आसमान में गरजते बादल काल की दहाड़ सा डरा रहे हैं। चोटियां न जाने कौन पत्थर लुढ़ककर जान ले ले...कहीं भी प्राण रक्षा के आसार नजर नहीं आ रहे। हर पल मौत के आगोश में लग रहा है। गत दो-तीन सालों से यह सब हो रहा था, लेकिन इस बार जब लोग भगवान की चौखट पर भी सुरक्षित नहीं बचे, तो आम चौखटों की क्या बिसात...। डिप्रेसन:-
देखिए डिप्रेशन एक ऐसी चीज है जिससे कोई भी प्रभावित हो सकता है। कोशिश कीजिए कि आप हमेशा खुश रहें। लोगों को अक्सर देखा गया है कि वह छोटी-छोटी बातों पर तनाव लेने लगते हैं। वह भूल जाते हैं कि इस दुनिया में वह फिजूल की बातें सोचने के अलावा जिंदगी जीने भी आए हैं। दुख-सुख तो जिंदगी का एक पार्ट है, वह तो आते जाते रहेंगे। महत्वपूर्ण यह है कि आप जिंदगी को किस तरह से जी रहे हैं। अपने अंदर की प्रतिभा तथा क्षमता को नजरअंदाज करके डिप्रेशन में मत आइए बल्कि कोशिश करते रहें कामयाबी जरूर मिलेगी।
उत्तराखंड से पलायन मजबूरी महानगरीय चकाचौंध तले हमारे देश का एक बड़ा तबका बड़े शहरों में अपना जीवन ज्यादा सुखी देखता है उत्तराखंड की हमारी आज की नौजवान पीड़ी अपने गावो से लगातार कटती जा रही है ।रोजी रोटी की तलाश में घर से निकला यहाँ का नौजवान अपने बुजुर्गो की सुध इस दौर में नहीं ले पा रहा है ।यहाँ के गावो में आज बुजुर्गो की अंतिम पीड़ी रह रही है और कई मकान बुजुर्गो के निधन के बाद सूने हो गए हैं ।आज आलम यह है दशहरा , दीपावली , होली सरीखे त्यौहार भी इन इलाको में उस उत्साह के साथ नहीं मनाये जाते जो उत्साह बरसो पहले संयुक्त परिवार के साथ देखने को मिलता था । हालात कितने खराब हो चुके हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है आज पहाड़ो में लोगो ने खेतीबाड़ी जहाँ छोड़ दी है वहीँ पशुपालन भी इस दौर में घाटे का सौदा बन गया है क्युकि वन सम्पदा लगातार सिकुड़ती जा रही है और माफियाओ , कारपोरेट और सरकार का काकटेल पहाड़ो की सुन्दरता पर ग्रहण ...
मेरा #गांव अब उदास रहता है.. ✍️ लड़के जितने भी थे मेरे गांव में। जो बैठते थे दोपहर की छांव में। बड़ी रौनक हुआ करती थी जिनसे घर में वो सब के सब चले गए शहर में। ऐसा नही कि रहने को मकान नही था। बस यहां रोटी का इंतजाम नहीं था। हास परिहास का आम तौर पर उपवास रहता है। मेरा #गांव अब उदास रहता है।। बाबू जी ठंड में सिकुड़े और पसीने मे नहाए थे। तब जाकर तीन कमरे किसी तरह बनवाए थे। अब तीनों कमरे खाली हैं मैदान बेजान है। छतें अकेली हैं गलियां वीरान हैं।। मां का शरीर भी अब घुटनों पर भारी है। पिता को हार्ट और डाईविटीज की बीमारी है। अपने ही घर में मां बाप का वनवास रहता है। मेरा #गांव अब उदास रहता है।। छत से बतियाते पंखे, दीवारें और जाले हैं। कुछ मकानों पर तो कई वर्षों से तालें हैं।। बेटियों को ब्याह दिया गया ससुराल चली गई। दीवाली की छुरछुरी होली का गुलाल चली गई। मोहल्ले मे जाओ जरा झांको कपाट पर। बैठे मिलेंगे अकेले बाबू जी, किसी कुर्सी किसी खाट पर।। सावन के झूले उतर गए भादों भी निराश रहता है। मेरा #गांव अब उदास रहता है।। कबड्डी क्रिकेट अंताक्षरी, सब वक्त की तह में दब गए। हमारे गांव के ल...
Are you related with late sri chintamani bhadula
ReplyDeleteआपने इस विषय पर एक बेहतरीन लेख लिखा है, मैं बहुत प्रभावित हुआ। मेरा यह लेख भी पढ़ें मां कालिंका मंदिर
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