उत्तराखंड से पलायन मजबूरी
उत्तराखंड से पलायन मजबूरी महानगरीय चकाचौंध तले हमारे देश का एक बड़ा तबका बड़े शहरों में अपना जीवन ज्यादा सुखी देखता है उत्तराखंड की हमारी आज की नौजवान पीड़ी अपने गावो से लगातार कटती जा रही है ।रोजी रोटी की तलाश में घर से निकला यहाँ का नौजवान अपने बुजुर्गो की सुध इस दौर में नहीं ले पा रहा है ।यहाँ के गावो में आज बुजुर्गो की अंतिम पीड़ी रह रही है और कई मकान बुजुर्गो के निधन के बाद सूने हो गए हैं ।आज आलम यह है दशहरा , दीपावली , होली सरीखे त्यौहार भी इन इलाको में उस उत्साह के साथ नहीं मनाये जाते जो उत्साह बरसो पहले संयुक्त परिवार के साथ देखने को मिलता था । हालात कितने खराब हो चुके हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है आज पहाड़ो में लोगो ने खेतीबाड़ी जहाँ छोड़ दी है वहीँ पशुपालन भी इस दौर में घाटे का सौदा बन गया है क्युकि वन सम्पदा लगातार सिकुड़ती जा रही है और माफियाओ , कारपोरेट और सरकार का काकटेल पहाड़ो की सुन्दरता पर ग्रहण ...